लैंडर विक्रम का पता चला, कोशिशें फिर से जारी
जान अभी बाक़ी हे चाँद का पीछा नही छोडेंगे
नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) ने चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम का पता लगाने में सफलता हासिल की है। इसरो के चेयरमैन डॉ. के सिवन ने रविवार को बताया कि चंद्रमा पर विक्रम लैंडर का पता लग चुका है। ऑर्बिटर ने लैंडर की कुछ तस्वीरें (थर्मल इमेज) ली हैं। विक्रम से संपर्क की कोशिशें जारी हैं। हालांकि, ऑर्बिटर के द्वारा ली गईं लैंडर की तस्वीरें इसरो तक पहुंचना बाकी हैं।
इसरो 7 सितंबर को अंतरिक्ष विज्ञान में इतिहास रचने के करीब था, लेकिन चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम का लैंडिंग से महज 69 सेकंड पहले पृथ्वी से संपर्क टूट गया। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर विक्रम की शुक्रवार-शनिवार की दरमियानी रात 1 बजकर 53 मिनट पर लैंडिंग होनी थी। इसके बाद सिवन ने कहा कि भारतीय मिशन करीब 99% सफल रहा। सिर्फ आखिरी चरण में लैंडर से संपर्क टूटा था।
विक्रम लैंडर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना था। सिवन ने बताया था, ‘‘लैंडर विक्रम की लैंडिंग प्रक्रिया एकदम ठीक थी। जब यान चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह से 2.1 किमी दूर था, तब उसका पृथ्वी से संपर्क टूट गया। हम ऑर्बिटर से मिल रहे डेटा का विश्लेषण कर रहे हैं। हमने आखिरी चरण में सिर्फ लैंडर से संपर्क खोया है। अगले 14 दिन संपर्क साधने की कोशिश करेंगे।’’
आगे क्या? जिस ऑर्बिटर से लैंडर अलग हुआ था, वह अभी भी चंद्रमा की सतह से 119 किमी से 127 किमी की ऊंचाई पर घूम रहा है। 2,379 किलो वजनी ऑर्बिटर के साथ 8 पेलोड हैं और यह 7 साल तक काम करेगा। यानी लैंडर और रोवर की स्थिति पता नहीं चलने पर भी मिशन जारी रहेगा। 8 पेलोड के अलग-अलग काम होंगे...
चांद की सतह का नक्शा तैयार करना। इससे चांद के अस्तित्व और उसके विकास का पता लगाने की कोशिश होगी। मैग्नीशियम, एल्युमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, टाइटेनियम, आयरन और सोडियम की मौजूदगी का पता लगाना। सूरज की किरणों में मौजूद सोलर रेडिएशन की तीव्रता को मापना। चांद की सतह की हाई रेजोल्यूशन तस्वीरें खींचना। सतह पर चट्टान या गड्ढे को पहचानना ताकि लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग हो।
चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी की मौजूदगी और खनिजों का पता लगाना। ध्रुवीय क्षेत्र के गड्ढों में बर्फ के रूप में जमा पानी का पता लगाना। चंद्रमा के बाहरी वातावरण को स्कैन करना।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने कहा है कि पिछले छह दशक में चांद पर भेजे गए महज 61 फीसदी मिशन ही सफल हो पाए हैं। 1958 से लेकर अब तक 109 मिशन चांद पर भेजे गए, लेकिन इसमें सिर्फ 60 मिशन ही सफल हो पाए। रोवर की लैंडिंग में 46 मिशन को सफलता मिली और सैंपल भेजने की पूरी प्रक्रिया में सफलता सिर्फ 21 मिशन को मिली है। जबकि दो को आंशिक रूप से सफलता मिली थी। लूनर मिशन में पहली सफलता रूस को 4 जनवरी 1959 में मिली थी।
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