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    ‘ई-मीडिया क्रिएटिव(E-Media creative)’ को खबरों की दुनिया का एक ऐसा माध्यम बनाने का हमारा प्रयाश रहेगा,जिसके द्वारा खबरों में रूचि रखने वाला कोई भी शख्स अपनी आवाज को बुलंद कर सके.वर्तमान समय में जब निष्पक्ष और सही रूप में खबरे लोगो तक नहीं पहुंचना मिडिया संस्थानों के लिए एक बड़ी चुनौती है | ऐसे समय में ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’ एक प्रयाश के रूप में अपने दर्शको को कुछ ख़ास और अलग हटकर देने की पहल करेगा,ताकि लालटन के द्वारा उन लोगो की आवाज को भी बल मिल सके जिनकी खबरे मिडिया के शोर में दबकर रह जाती है.

    ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’ को खबरों की दुनिया का एक ऐसा माध्यम बनाने का हमारा प्रयाश रहेगा,जिसके द्वारा खबरों में रूचि रखने वाला कोई भी शख्स अपनी आवाज को बुलंद कर सके.वर्तमान समय में जब निष्पक्ष और सही रूप में खबरे लोगो तक नहीं पहुंचना मिडिया संस्थानों के लिए एक बड़ी चुनौती है.ऐसे समय में ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’ एक प्रयाश के रूप में अपने दर्शको को कुछ ख़ास और अलग हटकर देने की पहल करेगा,ताकि लालटन के द्वारा उन लोगो की आवाज को भी बल मिल सके जिनकी खबरे मिडिया के शोर में दबकर रह जाती है.

    क्या कॉरपोरेट घरानों द्वारा चलाए जा रहे या पारिवारिक विरासत बन चुके मीडिया संस्थानों के बीच किसी ऐसे संस्थान की कल्पना की जा सकती है जहां सिर्फ पत्रकार और पाठक को महत्व दिया जाए ? कोई ऐसा अखबार,टेलीविजन चैनल या मीडिया वेबसाइट जहां संपादक पत्रकारों की नियुक्ति,खबरों की कवरेज जैसे फैसले संस्थान और पत्रकारिता के हित को ध्यान में रखकर ले,न कि संस्थान मालिक या किसी नेता या विज्ञापनदाता को ध्यान में रखकर.किसी भी लोकतंत्र में जनता मीडिया से इतनी उम्मीद तो करती ही है पर भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में मीडिया के वर्तमान माहौल में संपादकों को ये आजादी बमुश्किल मिलती है.वक्त के साथ-साथ पत्रकारिता का स्तर नीचे जा रहा है,स्थितियां और खराब होती जा रही हैं.

    पत्रकारिता में दिनों-दिन कई गलत प्रचलन सामने आ रहे हैं,जैसे खबरों को गैर-जरूरी तरीके से संपादित करना,पेड न्यूज,निजी संबंधों के लाभ के लिए कुछ खबरों को चलाना आदि.मीडिया संस्थान अब खबर तक पहुंचना नहीं चाहते,इसके उलट,उन्होंने पत्रकारिता की आड़ में व्यापारिक समझौते करने शुरू कर दिए हैं,जिसके चलते खबरों का असली स्वरूप ना केवल ख़त्म होता जा रहा है बल्कि दूर-दराज ग्रामीण क्षेत्रो की बड़ी खबरे भी किसी अख़बार व चैनल की हैडलाइन बनने लायक होने के बाद भी छूट जाती है.ऐसे में लोकतंत्र के ‘चौथे स्तंभ’ पर अंधा विश्वाश रखने वाले लोगो की धीरे-धीरे उम्मीदे टूटती जा रही है.ऐसे में इस विश्वाश को ग्रामीण क्षेत्रो तक फिर से बहाल करने के लिए ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’ का एक प्रयाश है.

    कुछ महत्वपूर्ण सूचनाएं और खबरें जनता तक पहुंचती ही नहीं हैं क्योंकि मीडिया संस्थान उन्हें किसी व्यक्ति या संस्था विशेष को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से सामने लाना ही नहीं चाहते.धीरे-धीरे ही सही पर जनता भी इस बात को समझने लगी है कि पत्रकारिता खतरे में पड़ रही है.आमजन का मीडिया पर विश्वास कम हो रहा है.वही मीडिया जो लोकतंत्र का ‘चौथा स्तंभ’ होने का दम भरता था,अपनी विश्वसनीयता खोता जा रहा है.मिडिया की इसी कमजोर होती हुई विश्वशनीयता को मजबूत करने के लिए अँधेरे में उजाले का प्रयाश है ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’। 

    अगर पत्रकारिता को बचाए रखना है तो इसका एक ही रास्ता है कि आमजन को इसमें भागीदार बनना होगा.जो पाठक इस तरह की पत्रकारिता बचाए रखना चाहते हैं, सच तक पहुंचना चाहते हैं,चाहते हैं कि खबर को साफगोई से पेश किया जाए न कि किसी के फायदे को देखकर तो वे इसके लिए सामने आएं और ई-मीडिया क्रिएटिव जैसे संस्थान को चलाने में मदद करें.एक संस्थान के रूप में ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’ का हिंदी संस्करण जनहित और लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुसार चलने के लिए प्रतिबद्ध है.खबरों के विश्लेषण और उन पर टिप्पणी देने के अलावा हमारा उद्देश्य रिपोर्टिंग के पारंपरिक स्वरूप को बचाए रखने का भी है.सोशल मिडिया में जैसे-जैसे हमारे संसाधन बढ़ेंगे,हम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक स्टीक रिपोर्ट के साथ पहुंचने की कोशिश करेंगे.

    इस उद्देश्य की तरफ ये हमारा छोटा ही सही पर महत्वपूर्ण कदम है.पत्रकारिता के इस स्वरूप को लेकर हमारी सोच के रास्ते में सिर्फ जरूरी संसाधनों की अनुपलब्धता ही बाधा है.हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें,सुने और शेयर करें,इसके अलावा इसे और बेहतर करने के सुझाव दें.ताकि ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’ को हर कोई पसंद करे तो उसमें आप सभी लोगो का नाम भी जुड़े।

    ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’ को खबरों की दुनिया का एक ऐसा माध्यम बनाने का हमारा प्रयाश रहेगा,जिसके द्वारा खबरों में रूचि रखने वाला कोई भी शख्स अपनी आवाज को बुलंद कर सके.वर्तमान समय में जब निष्पक्ष और सही रूप में खबरे लोगो तक नहीं पहुंचना मिडिया संस्थानों के लिए एक बड़ी चुनौती है.ऐसे समय में ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’ एक प्रयाश के रूप में अपने दर्शको को कुछ ख़ास और अलग हटकर देने की पहल करेगा,ताकि लालटन के द्वारा उन लोगो की आवाज को भी बल मिल सके जिनकी खबरे मिडिया के शोर में दबकर रह जाती है.

    क्या कॉरपोरेट घरानों द्वारा चलाए जा रहे या पारिवारिक विरासत बन चुके मीडिया संस्थानों के बीच किसी ऐसे संस्थान की कल्पना की जा सकती है जहां सिर्फ पत्रकार और पाठक को महत्व दिया जाए ? कोई ऐसा अखबार,टेलीविजन चैनल या मीडिया वेबसाइट जहां संपादक पत्रकारों की नियुक्ति,खबरों की कवरेज जैसे फैसले संस्थान और पत्रकारिता के हित को ध्यान में रखकर ले,न कि संस्थान मालिक या किसी नेता या विज्ञापनदाता को ध्यान में रखकर.किसी भी लोकतंत्र में जनता मीडिया से इतनी उम्मीद तो करती ही है पर भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में मीडिया के वर्तमान माहौल में संपादकों को ये आजादी बमुश्किल मिलती है.वक्त के साथ-साथ पत्रकारिता का स्तर नीचे जा रहा है,स्थितियां और खराब होती जा रही हैं.
    पत्रकारिता में दिनों-दिन कई गलत प्रचलन सामने आ रहे हैं,जैसे खबरों को गैर-जरूरी तरीके से संपादित करना,पेड न्यूज,निजी संबंधों के लाभ के लिए कुछ खबरों को चलाना आदि | मीडिया संस्थान अब खबर तक पहुंचना नहीं चाहते,इसके उलट,उन्होंने पत्रकारिता की आड़ में व्यापारिक समझौते करने शुरू कर दिए हैं | जिसके चलते खबरों का असली स्वरूप ना केवल ख़त्म होता जा रहा है बल्कि दूर-दराज ग्रामीण क्षेत्रो की बड़ी खबरे भी किसी अख़बार व चैनल की हैडलाइन बनने लायक होने के बाद भी छूट जाती है | ऐसे में लोकतंत्र के ‘चौथे स्तंभ’ पर अंधा विश्वाश रखने वाले लोगो की धीरे-धीरे उम्मीदे टूटती जा रही है | ऐसे में इस विश्वाश को ग्रामीण क्षेत्रो तक फिर से बहाल करने के लिए ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’ का एक प्रयाश है |
    कुछ महत्वपूर्ण सूचनाएं और खबरें जनता तक पहुंचती ही नहीं हैं क्योंकि मीडिया संस्थान उन्हें किसी व्यक्ति या संस्था विशेष को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से सामने लाना ही नहीं चाहते | धीरे-धीरे ही सही पर जनता भी इस बात को समझने लगी है कि पत्रकारिता खतरे में पड़ रही है | आमजन का मीडिया पर विश्वास कम हो रहा है | वही मीडिया जो लोकतंत्र का ‘चौथा स्तंभ’ होने का दम भरता था,अपनी विश्वसनीयता खोता जा रहा है | मिडिया की इसी कमजोर होती हुई विश्वशनीयता को मजबूत करने के लिए ‘अँधेरे में उजाले’ का प्रयाश है ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’। 
    अगर पत्रकारिता को बचाए रखना है तो इसका एक ही रास्ता है कि आमजन को इसमें भागीदार बनना होगा.जो पाठक इस तरह की पत्रकारिता बचाए रखना चाहते हैं, सच तक पहुंचना चाहते हैं,चाहते हैं कि खबर को साफगोई से पेश किया जाए न कि किसी के फायदे को देखकर तो वे इसके लिए सामने आएं और ई-मीडिया क्रिएटिव जैसे संस्थान को चलाने में मदद करें.एक संस्थान के रूप में ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’ का हिंदी संस्करण जनहित और लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुसार चलने के लिए प्रतिबद्ध है | खबरों के विश्लेषण और उन पर टिप्पणी देने के अलावा हमारा उद्देश्य रिपोर्टिंग के पारंपरिक स्वरूप को बचाए रखने का भी है | सोशल मिडिया में जैसे-जैसे हमारे संसाधन बढ़ेंगे,हम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक स्टीक रिपोर्ट के साथ पहुंचने की कोशिश करेंगे |

    इस उद्देश्य की तरफ ये हमारा छोटा ही सही पर महत्वपूर्ण कदम है | पत्रकारिता के इस स्वरूप को लेकर हमारी सोच के रास्ते में सिर्फ जरूरी संसाधनों की अनुपलब्धता ही बाधा है | हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें,सुने और शेयर करें,इसके अलावा इसे और बेहतर करने के सुझाव दें.ताकि ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’ को हर कोई पसंद करे तो उसमें आप सभी लोगो का नाम भी जुड़े।

    ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’ की शुरुआत राजस्थान के श्रीगंगानगर जिला मुखलाय से होकर धीरे-धीरे आपको बेहतरीन कलेवर और बड़े स्वरूप में दिखाई देगा। ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’ को शुरू करने का हमारा मकसद यही है की हम पत्रकारिता के क्षेत्र में सोशल मिडिया के इस दौर में दर्शको को कुछ ऐसा दे की वो ना केवल ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’ में अपनी रूचि बनाये बल्कि उनको ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’ से हर रोज कुछ नया सुनने,देखने और सिखने को मिले। ‘ई-मीडिया क्रिएटिव’ किसी प्रकार टीआरपी के चक्कर में खबरों की हत्या नहीं करेगा बल्कि खबरों का सही तरीके से दर्शको तक पहुचायेगा। 

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